बीते कल से कुछ सपने उधार ले फिर जीने की कोशिश कर रही हूँ ।
मेरे ही अन्दर हैँ सब जवाब इस यक़ीन पे यक़ीन करने की कोशिश कर रही हूँ।
मेरा अपना दिल ही नाराज़ है मुझसे कि क्यूँ खोजा मैंने सुकूँ बाहर
जो वादा था इससे जीने का, न झुकने का, न माँगने का
फिर क्यों बेसब्र हो गई , क्यों हो गई काफ़िर ?
अपने ही पुराने आप से अपनी मुलाक़ात कराते रहना है
जब तक दोनों फिर न मिल जाएँ
मैं अपने आप से
मेरा दिल मेरी मंज़िल से
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